गाजियाबाद में फंसी इन प्रवासी मजदूरों को प्रधानमंत्री से क्यों है भरोसे से भरपूर शिकायत सुनें..
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अनुराधा पी सिंह की रिपोर्ट
वीडियो में जो महिला हैं उनका नाम प्रेम बाई है। यह मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से हैं। फिलहाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में वैशाली सेक्टर 5 स्थित एक कंस्ट्रकशन साइट पर लॉकडाउन में फंसी हुई हैं। प्रेम बाई अपने पति के साथ जिस रोजी-रोटी की तलाश में मध्यप्रदेश से गाजियाबाद तक आ पहुंची, कोरोना संकट की वजह से रोजी यानी कि रोजगार एवं रोटी दोनों पर ही आफत आन पड़ी। इन्होंने अपने दो बच्चों को गांव पर ही छोड़ना मुनासिब समझा। बच्चों के बारे में बात करते हुए प्रेम बाई बताती हैं कि इनके दोनों बच्चे फोन कर रोज इनके आने का पूछते हैं सो यह जल्दी उनके पास पहुंचना चाहती हैं।
प्रेम बाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भरोसे से भरपूर शिकायत है। वह कहती हैं प्रधानमंत्री तो इनके लिए सहायता राशि मुहैया करा रहे हैं मगर इन तक वह पहुंच नहीं पा रही। सुनें :
प्रेम बाई अकेली नहीं, इनके जैसी कई महिलाएं हैं जिनके लिए सरकार का मतलब ही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान 68 प्रतिशत था जबकि पुरुषों का 68.3 प्रतिशत। महज 0.3 प्रतिशत का यह फासला अब तक के लोकसभा चुनावों के इतिहास में सबसे कम था।
जैसा कि आपने वीडियो में सुना इन प्रवासी मजदूरों में से किसी के भी पास प्रधानमंत्री जन-धन खाता नहीं है। अशिक्षित होने एवं जानकारी न हो पाने के आभाव में संभव है कि इनका प्रधानमंत्री जन-धन खाता न खुला हो। देश भर में ऐसे कई लोग हैं जो आर्थिक तौर पर बेहद दयनीय स्थिति में हैं एवं जन-धन खाता नहीं होने की वजह से उन तक केंद्र एव राज्य सरकारों द्वारा मुहैया कराई जा रही कोई आर्थिक मदद भी नहीं पहुंच पा रही।
प्रेम बाई के साथ ही टीकमगढ एवं झांसी की भी कई महिलाएं अपने परिवार के साथ इसी कंसट्रक्शन साइट पर बनी झुग्गियों में रहती हैं। यह सभी दिहाड़ी फरवरी के महीने में अपने गांव से काम की तलाश में गाजियाबाद आए थे। एक ठेकेदार ने इन्हें वैशाली सेक्टर 5 के इस निर्माणाधीण इमारत में दिहाड़ी मजदूरी का काम दिलवाया। 24 मार्च को लॉकडाउन के बाद निर्माण कार्य रुक गया। उसके बाद यह सभी लोग अपने-अपने गांव जाने के लिए आनंद विहार बस अड्डे पहुंचे मगर जा नहीं पाए। वहां पुलिसकर्मियों ने इन्हें जाने से रोका तो ये लोग वापस आ गए। इन्होंने फिर दोबारा वापस जाने की कोशिश नहीं कि क्योंकि इन्हें वहां पहुचे लोगों ने बताया कि जो भी वापस आ रहा है उसे स्कूलों में क्वारनटीन कर दिया जा रहा है। इस डर से यह लोग वापस गये ही नहीं।
यह पूछे जाने पर कि ये सभी लोग अपने गांव में ही क्यों नहीं खेती बाड़ी कर वहीं रुके, एक महिला जो अपना नाम कुछ संकुचाई हुई सी ‘बड़ी बहू’ बताती हैं, ने कहा कि इनके पास जमीन तो है मगर वह उपजाउ नहीं है। जमीन में पत्थर हैं एवं पानी की भी समस्या है। इसी कारण यह लोग रोजगार की तलाश में यहां आ गये। सुनें:
यह सभी महिलाएं कंस्ट्रकशन साइट पर झुग्गी बनाकर अपने परिवार के साथ रहती हैं। इन्होंने बताया कि बिल्डर ने लॉकडाउन के शुरुआती कुछ दिनों तक ही इनके खाने का इंतजाम किया। फिर कुछ पुलिसवालों ने इन्हें राशन मुहैया कराया। वह खत्म होने पर भी ये लोग आस-पास के किराने की दुकान से राशन उधारी लेकर काम चला रहे हैं।
यह पूछने पर कि लॉकडाउन में इनका समय कैसे व्यतीत हो रहा है ये बताती हैं कि सभी महिलाएं सुबह काम खत्म कर के अपनी-अपनी झुग्गी के बाहर इकट्ठा हो जाती हैं और बाते करती हैं। इनके पास टेलीविजन नहीं है । फोन है जिसमें फ्री इंटरनेट डाटा है उसी की मदद से, उन्हीं के शब्दों में ‘टाइमपास’ करती हैं।
इनका प्रवासी मजदूरों का कहना है कि अगर और 5-6 दिनों में काम शुरु होता है तो ये लोग यहीं रुक जाएंगे। नहीं तो इनकी मांग है कि सरकार इन्हें इनके घर तक पहुंचा दे।