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तालाबंदी में भी भीख मांगकर गुजारा करने वाली महिलाओं की परेशानी सुनें उन्हीं की जुबानी

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अनुराधा सिंह की रिपोर्ट

सुना आपने यह वीडियो। इस महिला का नाम खुशबू है।

खुशबू गाजियाबाद के खोड़ा में अपने पति एवं चार बच्चों के साथ रहती हैं और भीख मांगकर अपना जीवनयापन करती हैं।

कोरोना वायरस के बढते संक्रमण से नागरिकों को बचाने के लिए 25 मार्च से ही भारत में 21 दिनों की तालाबंदी (LOCKDOWN) जारी है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस वैश्विक महामारी से बचाव के लिए तालाबंदी ही सबसे कारगर उपायों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ो के मुताबिक भारत की जनसंख्या साल 2019 में 1.36 अरब थी इस जनसंख्या और कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढने के मद्देनजर भारत सरकार को राष्ट्रव्यापी तालाबंदी का फैसला लेना पड़ा।

मगर इस वैश्विक महामारी से बचने के लिए अति आवश्यक कदम तालाबंदी का एक सच खुशबू एवं उनके जैसी आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर वर्ग की महिलाओं के रूप में भी देश के सामने है। तालाबंदी के दौरान सरकारी निर्देशों के अनुसार घर से सिर्फ अत्यंत आवश्यक कार्यों के लिए निकलने की अनुमति है वह भी मास्क लगाकर, सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए।

मगर खुशबू एवं उनके जैसी अन्य महिलाएं जो भीख मांगकर गुजर बसर करती हैं उनके लिए शायद उनका यह नियमित कार्य अति आवश्यक कार्य की श्रेणी में आता है।

यह पूछने पर की क्या उसे कोरोना संक्रमण के बारे में पता नहीं, वह कुछ सकुचाई हुई सी कहती है, “ हां पता है इसी के लिए तो सब बंदी है।”

आगे पूछे जाने पर कि कोरोना वायरस से संक्रमण एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है ऐसे में उसने मास्क क्यों नहीं लगाया खुशबू बताती हैं, “ नहीं है हमारे पास। बच्चा का मूंह कैसे ढकें, इतना छोटा है सांसे नहीं आएगा। घरे कइसे छोड़ के आते, 8 महीना का है। खोड़ा से वैशाली पैदल आने में आने-जाने और यहां घूम-घूम के भीख मांगने में 5-6 घंटा तो लग जाता है। तब तक ई बिना दूध के कैसे रहेगा। इसलिए साथे ले आते हैं। कहीं बैठ के दूध पिला देते हैं।”

खुशबू बताती हैं कि तालाबंदी की वजह से उनके पति को दिहाड़ी मजदूरी का कोई काम नहीं मिल पा रहा था । ऐसे में उनके परिवार के लिए पर्याप्त राशन न होने की वजह से खुशबू के सामने सड़क पर निकल कर भीख मांगने के कार्य को जारी रखने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वह कहती हैं, ” सरकार देता, कोई पुलिस वाले देते तो क्या रोड पर चलने के शौक( चाहत) लगा है।”

वह तालाबांदी के दौरान प्रतिदिन दोपहर के बाद खोड़ा से वैशाली पैदल चलकर आती हैं। यह पूछने पर कि खोड़ा में अपने घर के आस-पास ही किसी से मदद क्यो नहीं ली, खुशबू बताती हैं, “ जहां हम रहते हैं वहां कोई कोठी वाला(आर्थिक तौर पर मजबूत) तो है नहीं कि मदद करेगा। सब हमारे जइसा है तो कौन किसका मदद करेगा।”

खुशबू ने बताया कि पिछले एक हफ्ते में उन्हें 200 रुपये भीख में मिल पाए। इसके अलावा वैशाली के बाजार में सब्जी विक्रेता भी कई बार उन्हें सब्जियां दे देते हैं। साथ ही राशन विक्रेता भी कई बार उनके बच्चे के लिए बिस्किट दे देते हैं।

देश भर से सभी प्रवासी मजदूरों के लॉकडाउन के दूसरे दिन से ही अपने-अपने गृह राज्यों की ओर कूच करने की बात पर खुशबू कहती हैं, “ ई चार-चार गो छोट बच्चा लेकर कहां जाएं, वहां से तो इहां भागकर आए कमाने का लिए। अब फिर उहां जाएं। ई बीमारी तो ठीक होगा ही। होना होगा तो घरे (गृह जिले में उनके गांव में) भी हो जाएगा। उहां कौन सा जमीन जायदाद पैसा रखा है मेरे लिए। आदमी जन (लोग) तो सब जगह एके(एक) जइसा ही है।”

खुशबू से थोड़ी दूरी पर ही एक और महिला भीख मांगती हुई दिखाई देती है। ठीक उसी तरह गोद में तकरीबन 1 साल का बच्चा लिए बिना कोई मास्क लगाए।

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