लॉकडाउन में रोजाना 50 लोगों को खाना बनाकर खिला रही देश की यह आम दिव्यांग महिला नागरिक
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अनुराधा सिंह की रिपोर्ट:
24 मार्च रात बारह बजे से ही भारत 21 दिनों के लॉकडाउन में है। कोरोना वायरस के बढते संक्रमण के मद्देनजर सरकार को यह फैसला लेना पड़ा।
आज लॉकडाउन का 7वां दिन है। नमिता ने आज भी पचास लोगों का खाना अपने हाथों बनाया और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों द्वारा उन लोगों तक पहुंचवाया जो भूख से दो-दो हाथ कर रहे हैं।
मालूम हो कि देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थान बंद हैं। कुछ संस्थानों की आपातकालीन सेवाएं जरूर जारी हैं ताकि नागरिकों को परेशानी ना हो।
ऐसे वक्त में जब सभी अपने-अपने घरों तक सीमित हैं, देश के वो नागरिक जो आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर हैं और दिहाड़ी मजदूरी कर अपना जीवनयापन करते हैं, उनके सामने विकट परिस्थिति खड़ी हो गई है। प्रतिदिन दिहाड़ी कमा कर अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने वाले इन लोगों को खाने की दिक्कत हो गई है।
नमिता ना ही तो किसी समाजसेवी संस्था से ताल्लुक रखती हैं, ना ही उनका वास्ता देश के किसी राजनैतिक दल से है। वो इस देश की एक आम महिला नागरिक हैं। सुबह 5 बजे उठकर, घरेलू काम निपटाकर, पति को दफ्तर भेजकर, बच्चे को लाड दुलार कर, उसके सभी काम पूरे कर, 8 बजे दफ्तर के लिए घर से निकल जाने वाली महिला।
फिर शाम घर लौट बच्चे को भागकर गले लगाने वाली, देर रात सभी घरेलू काम निपटा कर अगली सुबह की तैयारियों की चितां के साथ नींद के आगोश में जाने वाली आम महिला नागरिक।
देश के विभिन्न संस्थान, उधोगपति एवं नामी गिरामी हस्तियांं जहां इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत सरकार को लाखों, करोड़ों रुपयों का योगदान दे रहे हैं। वहीं नमिता जैसी देश की आम महिला नागरिक के योगदान को जो कि दिव्यांग होने के बावजूद प्रतिदिन 50 जरूरतमंद लोगों को खुद से खाना बनाकर खिला रही हैं, कम नहीं आंका जा सकता।
जन्म से ही नमिता के बांए हाथ की हथेली नहीं है। मगर दिव्यांग होना कभी नमिता के हौसले के आड़े नहीं आया।
वो कहती हैं, “ मुझे तो कभी नहीं लगा कि मैं दूसरों से अलग हूं । हां पर झूठ नहीं बोलूंगी अब तक के सफर में कई लोग ऐसे मिले जिन्होंने जानबूझ कर गाहे-बगाहे यह बताने की कोशिश की कि मुझमें कोई कमी है।”
मूलत: झारखंड के धनबाद की रहने वाली 34 वर्षीय नमिता, भारतीय तेल निगम (Indian Oil Corporation Ltd), नोएडा में वरिष्ठ प्रबंधक कानून के पद पर कार्यरत हैं। वो नोएडा में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
नमिता के इस नेक काम में उनके पति धीरज ने भी उनका बहुत सहयोग किया। धीरज पेशे से इंजीनियर हैं। वो बताती हैं, “ मैंने सोच तो लिया कि जो भूखे हैं उनको खाना खिलाउंगी। फिर बात अटकी की कितनों को ? ऐसे में जब धीरज के सामने यह बात रखी तो वह बिना किसी ना नुकुर के राजी हो गए और सुझाव दिया कि कम से कम 50 लोगों को तो खिला ही सकते हैं । “
नमिता के माता-पिता उनके एक साल के बेटे के साथ धनबाद गए हुए हैं। लॉकडाउन की वजह से वापस नहीं आ पा रहे।
ऐसे में जब नमिता एवं उनके पति ने 50 लोगों को खाना खिलाने की बात सोची तो मन में कुछ संशय भी थे। वो कहती हैं “ सब कुछ चैलेंजिंग (चुनौतिपूर्ण) था। एक साथ इतने लोगों का खाना मैंने कभी नहीं बनाया। राशन लाना, खाना बनाना, लोगों तक पहुंचाना, सब कैसे होगा? पड़ोसियों की भी मदद नहीं ले सकते, सोशल डिस्टैंसिंग (सामाजिक दूरी) भी बना कर रखनी है । लॉकडाउन की वजह से मेड (घरेलू सहायिका) भी नहीं आ रही। पर कहते हैं न हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा। सब हो रहा सही से।”
तड़के सुबह उठकर अपने कामों से निपटकर नमिता एवं उनके पति खाने की तैयारियों में लग जाते हैं। खाना बनाकर पूरी सफाई के साथ उसकी पैकिंग कर दोपहर को प्रशासन के अधिकारियों के सुपुर्द कर देते हैं।
उत्साहित नमिता बताती हैं, “ विश्वास कीजिए, समय और थकान का कुछ भी मालूम नहीं पड़ता। बहुत मुश्किल है मां के लिए 1 साल के बेटे से दूर रहना। लॉकडाउन खत्म होते ही उसके पास चले जाएंगे। मगर अभी जब दोपहर को अधिकारियों के हाथों में खाने के डब्बे सौंप घर की ओर मुड़ते हैं, एक राहत और चैन की लंबी सांस आती है।”