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लॉकडाउन कैसे बढा रहा है गर्भवती महिलाओं की चुनौतियां

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अनुराधा सिंह की रिपोर्ट

कोरोना वायरस के बढते संक्रमण के मद्देनजर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च 2020, रात बारह बजे से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। आज लॉकडाउन का 5वां दिन है। एक ओर जहां इस वैश्विक महामारी को देश में अपने पांव पसारने से रोकने के लिए लॉकडाउन बेहद जरूरी है। वहीं एक सच यह भी है कि इससे देशभर की गर्भवती महिलाओं के लिए कई समस्याएं भी खड़ी हो गई हैं।

31 साल की पल्लवी वत्स गर्भावस्था के 6ठे महीने में हैं। वह अपने पति कुणाल के साथ भुवनेश्वर में रहती हैं। कुणाल वहां कॉलेज में प्रोफेसर हैं।

पल्लवी के पति के अलावा परिवार का कोई दूसरा सदस्य उनके साथ नहीं है। पूरा परिवार बिहार के समस्तीपुर में रहता है। उन्हें अपने परिवार के पास इसी महीने में जाना था। मगर कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन में बंद पड़े यातायात की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।

पल्लवी कहती हैं, “मेरी पहली प्रेगनेन्सी है। अब तक तो बहुत खुश थी।  लेकिन अब डर लगने लगा है। कई बार घबराहट सी होने लगती है। यहां पति के अलावा परिवार का कोई सदस्य नहीं है।”

पल्लवी को डर है कि वह बच्चे के जन्म के बाद अकेले कैसे सब संभाल पाएंगी। उनका कहना है कि अपने परिवार की अन्य महिलाओं एवं अपनी कई दोस्तों के गर्भावस्था को उन्होंने करीब से देखा है। वो बताती हैं कि नॉर्मल डिलिवरी में तो 2-3 दिनों की परेशानी होती है मगर ऑपरेशन द्वारा बच्चे का जन्म होने पर महिला को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पल्लवी को डर है कि अगर उन्हें भी आखिर में ऑपरेशन के लिए जाना पड़ा तो क्या होगा। वो कहती हैं, “ मेरी भाभी की नौंवे महीने तक नॉर्मल डिलिवरी की ही बात थी। मगर आखिर में जाकर कुछ परेशानी की वजह से डॉक्टर ने ऑपरेशन करने का फैसला लिया। बच्ची के जन्म के 5 दिनों बाद भाभी को अस्पताल से छुट्टी मिली। मैं, मेरी मां और उनकी मां हम तीनों हर वक्त उनके साथ रहते थे। फिर भी काम पूरे नहीं होते। भाभी को खुद ही किसी के संभालने की जरूरत पड़ती थी सो ऐसे में वो बच्चे को कैसे अच्छे से संभाल पातीं। ”

सी-सेक्शन यानि कि ऑपरेशन द्वारा बच्चे के जन्म के बाद महिला को चिकित्सक द्वारा कुछ दिनों तक अपना ध्यान रखने के लिए कहा जाता है। उसके पेट में टांके होते हैं और उनका उसे विशेष ध्यान रखना होता है ताकि न तो उस पर कोई दबाव पड़े और ना ही वह पानी के संपर्क में आए। महिला कोई भारी सामान नहीं उठा सकती। यहां तक कि अपने बच्चे को स्तनपान कराने के लिए भी उसे किसी की मदद की जरूरत होती है जो बच्चा उठा कर उसकी गोद में दे सके।

पल्लवी को चिंता है कि ऐसे में उसके पति उसके साथ- साथ बच्चे का ध्यान कैसे रख पाएंगे। वो कहती हैं कि लॉकडाउन की वजह से कोई घरेलू सहायिका भी नहीं मिल रही।

पल्लवी के जैसी देश भर में कई गर्भवती महिलाएं हैं जो आनवाले कुछ दिनों में अपनी गर्भावस्था के 9 महीने पूरे कर कर लेंगीं।

एक और समस्या जिसका सामना गर्भवती महिलाओं को करना पड़ रहा वह है नियमित जांच (Routine check-up) की। गर्भावस्था के पूरे 9 महीनों के महिलाएं चिकित्सकों की देखरेख में रहती हैं। एक महिला जिस भी चिकित्सक की निगरानी में हो उसके पास उसे हर महीने शारीरिक जांच( physical examination) के लिए जाना पड़ता है। मगर कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से गर्भवती महिलाएं चिकित्सकों के निजी क्लिनिक या फिर अस्पताल नहीं जा पा रही हैं।

गाजियाबाद की जानी-मानी महिला चिकित्सक, डॉ रितु आर्या बताती हैं, “  परेशानी तो हो रही है। क्लिनिक पर संक्रमण का खतरा रहता है सो मैंने अपने मरीजों को यहां नहीं आने की हिदायत दी है। फोन पर ही बात कर, मैं उन्हें दवाईयां वगैरह या फिर और कोई परेशानी हो तो समझा देती हूं। मगर प्रेगनेंसी के दौरान कभी भी कोई इमरजेंसी हो सकती है तो ऐसे में महिला को क्लिनिक बुलाना ही पड़ता है। लेकिन मैं सभी को संक्रमण से बचाव के लिए बार-बार हाथ धोने या सैनिटाइज करने और मास्क लगाने की बात कहती ही रहती हूं। ”

डॉ. रितु आगे बताती हैं, “ हालांकि अभी तक तो सब सही है। मेरी ज्यादातर पेशेंट्स न्यूक्लियर फैमिली (एकल परिवार) से ही हैं और लॉकडाउन के दौरान जिनकी भी डिलिवरी हुई है उनके  परिवार वाले अभी तक साथ थे सो उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। मगर वो जिनके परिवार वाले आने-वाले दिनों में उनके साथ नहीं होंगे। हां उन्हे जरूर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मैं भी एक महिला हूं, मां हूं सो जानती हूं कि एक नवजात बच्चे को संभालने में क्या परेशानियां होती हैं।”

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